गूंगे बतलाने चले, देखो गुड़ का स्वाद
अंधा बाँटे रेवड़ी, रखो कहावत याद।।
हाल हंस का देख कर, मैना बैठी मूक
मान मोर का छिन गया, कोयल भूली कूक।।
गर्दभ गायन कर रहे, कौवे देते दाद।
अंधा बाँटे रेवड़ी, रखो कहावत याद।।
गायें लावारिस हुईं, कुत्ते बैठे गोद
विज्ञ हाशिये पर गए, मूर्ख मनाते मोद।।
भैंस खड़ी पगुरा रही, कैसे हो संवाद।
अंधा बाँटे रेवड़ी, रखो कहावत याद।।
चमगादड़ पहना रहे, उल्लू के सिर ताज
शेर-बाघ हैं जेल में, गीदड़ का है राज।।
निर्णायक है भेड़िया, कौन करे फरियाद।
अंधा बाँटे रेवड़ी, रखो कहावत याद।।
अश्रु बहाने के लिए, तत्पर हैं घड़ियाल
लड़े जहाँ पर बिल्लियाँ, बंदर खाते माल।।
सभी जगह यह हाल है, नहीं कहीं अपवाद।
अंधा बाँटे रेवड़ी, रखो कहावत याद।।
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़
अंधा बाँटे रेवड़ी, रखो कहावत याद।।
हाल हंस का देख कर, मैना बैठी मूक
मान मोर का छिन गया, कोयल भूली कूक।।
गर्दभ गायन कर रहे, कौवे देते दाद।
अंधा बाँटे रेवड़ी, रखो कहावत याद।।
गायें लावारिस हुईं, कुत्ते बैठे गोद
विज्ञ हाशिये पर गए, मूर्ख मनाते मोद।।
भैंस खड़ी पगुरा रही, कैसे हो संवाद।
अंधा बाँटे रेवड़ी, रखो कहावत याद।।
चमगादड़ पहना रहे, उल्लू के सिर ताज
शेर-बाघ हैं जेल में, गीदड़ का है राज।।
निर्णायक है भेड़िया, कौन करे फरियाद।
अंधा बाँटे रेवड़ी, रखो कहावत याद।।
अश्रु बहाने के लिए, तत्पर हैं घड़ियाल
लड़े जहाँ पर बिल्लियाँ, बंदर खाते माल।।
सभी जगह यह हाल है, नहीं कहीं अपवाद।
अंधा बाँटे रेवड़ी, रखो कहावत याद।।
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़