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Wednesday, November 16, 2016

किस करवट है बैठता, देखें अब के ऊँट

*दोहा छन्द*`

निर्णय के परिणाम से, हर कोई है स्तब्ध
सहनशीलता सर्वदा, जनता का प्रारब्ध ।

जनता ने पी ही लिया, फिर से कड़ुवा घूँट
किस करवट है बैठता, देखें अब के ऊँट ।

दूषित नीयत से अरुण, पनपा भ्रष्टाचार
आशान्वित होकर सदा, जनता बनी कतार ।

आकर कर दो राम जी, दुराचार को नष्ट
राम राज की आस में, जनता सहती कष्ट ।

विस्फारित आँखें लिए, ताक रहा आतंक
हर कोई जनता बना, क्या राजा क्या रंक ।

अरुण कुमार निगम

Sunday, November 13, 2016

सही फैसला या गलत, बतलायेगा वक्त.....

कुछ सामयिक दोहे .....

मैला है यदि आचरण, नीयत में है खोट 
रावण मिट सकते नहीं, चाहे बदलो नोट ।
 
नैतिक शिक्षा लुप्त है, सब धन पर आसक्त 
सही फैसला या गलत, बतलायेगा वक्त । 

बचपन बस्ते में दबा, यौवन काँधे भार 
प्रौढ़ दबा दायित्व में, वृद्ध हुए लाचार । 

पद का मद सँभला नहीं, कद पर धन की छाँव 
चौसर होती जिंदगी, नए नए नित दाँव । 

दिशा दशा को देख के, कवि-मन चुभते तीर 
अंधा बाँटे रेवड़ी, गदहा खाये खीर । 


अरुण कुमार निगम

Saturday, November 12, 2016

समाचार आया नए नोट का....



एक सामयिक ग़ज़ल.....
(१२२ १२२ १२२ १२)
समाचार आया नए नोट का
गिरा भाव अंजीर-अखरोट का |

दवा हो गई बंद जिस रात से
हुआ इल्म फौरन उन्हें चोट का |

मुखौटों में नीयत नहीं छुप सकी
सभी को पता चल गया खोट का |

जमानत के लाले उन्हें पड़ गए
भरोसा सदा था जिन्हें वोट का |

नवम्बर महीना बना जनवरी
उड़ा रंग नायाब-से कोट का |

मकां काँच के हो गए हैं अरुण
नहीं आसरा रह गया ओट का |


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
(छत्तीसगढ़)

Friday, November 11, 2016

आज के सन्दर्भ में दोहे -

आज के सन्दर्भ में दोहे -

भैया देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि
छुट्टा आवै काम उत,का करि सकै हजारि ।

उनको आवत देख के, छुट्टन करै पुकारि
नोट हजारि बंद हुए, कल अपनी भी बारि ।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे नोट हजार
मार्किट में चलता नहीं, गायब ब्लैक बजार ।

भैया खड़ा बजार में, लिए हजारी हाथ
कोई भी पूछै नहीं, मानो हुआ अनाथ ।

अरुण कुमार निगम

Wednesday, September 7, 2016

मन से उपजे गीत (मधुशाला छंद)

मन से उपजे गीत (मधुशाला छंद)

ह्रदय प्राण मन और शब्द-लय , एक ताल में जब आते 
तब ही बनते छंद सुहाने, जो सबका मन हर्षाते 
तुकबंदी है टूटी टहनी, पुष्प खिला क्या पाएगी 
मन से उपजे गीत-छंद  ही, सबका मन हैं छू पाते ||


अरुण कुमार निगम 
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़ 

Saturday, September 3, 2016

ब्लॉग जगत में दूसरी पारी

मित्रों , 


जीवन की विभिन्न विवशताओं ने लम्बे समय से बाध्य कर रखा था. अतः ब्लॉग जगत में मेरी लम्बे समय से अनुपस्थिति रही. ३१ अगस्त २०१६ को मैं भारतीय स्टेट बैंक में ३६ वर्ष की सेवाएं पूर्ण करते हुए सेवानिवृत्त हुआ हूँ. ब्लॉग जगत में अपनी अपनी दूसरी पारी का शुभारम्भ कर रहा हूँ. आशा है समस्त पुराने मित्रों का स्नेह पहले की ही तरह मुझे प्राप्त होगा. सादर. 


मेरा नया काव्य संग्रह प्रकाशन की प्रक्रिया में है. मुख पृष्ठ से इस पारी की शुरुवात करता हूँ .


अरुण कुमार निगम 

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)