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Sunday, July 20, 2014

कुंडलिया छन्द :



(१) कहाँ बदला है मौसम.............

पिसते  हरदम ही  रहे, मन में  पाले टीस
तुझको भी मौका मिला, तू भी ले अब पीस
तू भी ले अब पीस , बना कर  खा ले रोटी  
हम  चालों के बीच , सदा चौसर की गोटी
पूछ  रहा  विश्वास , कहाँ  बदला है मौसम
घुन  गेहूँ  के  साथ, रहा है  पिसते हरदम  ||

(२) दूर काफी है दिल्ली ........

बिल्ली है सम्मुख खड़ी , घंटी बाँधे कौन
एक अदद  इस प्रश्न पर , सारे चूहे मौन
सारे  चूहे  मौन , घंटियाँ  शंख  बजाते
मजबूरी  में  नित्य , आरती सारे  गाते
लिया सभी ने जान, दूर काफी है दिल्ली  
घंटी बाँधे कौन , खड़ी सम्मुख है बिल्ली  ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Sunday, July 13, 2014

गज़ल : बड़ा ही शोर हुआ .......



गज़ल :  बड़ा ही शोर हुआ .......

ये प्यार मस्त नज़र के सिवा कुछ और नहीं
खुमार ए चढ़ती उमर के सिवा कुछ और नहीं |१|

 पूछ  यार  मुझे  प्यार किसको कहते हैं
मेरी नज़र में  हुनर के सिवा कुछ और नहीं |२|

विकास   आप  कहें , है  लकीर टेढ़ी – सी
हमारी  टूटी  कमर के  सिवा कुछ और नहीं |३|

क़ज़ा  सुकून  भरी   नींद - सी लगी  यारों
हयात सोज़ ए जिगर के सिवा कुछ और नहीं |४|

फँसा जो एक दफा फिर न आ सका बाहर 
ये लोभ एक भँवर के सिवा कुछ और नहीं |५|

कभी था  वक़्त बुरा , दर पे माँगने आया
सँभल गया तो कुँवर के सिवा कुछ और नहीं |६|

शराब   सिर्फ  इजाफा  करे  खजाने  में
सही कहें तो जहर के सिवा कुछ और नहीं |७|

खिंची तो टूट गई कब भला रही कायम
तुम्हारी बात रबर के सिवा कुछ और नहीं |८|

बड़ा ही शोर हुआ  स्वर्ग आ गया भू पर
हवा में उड़ती खबर के सिवा कुछ और नहीं |९|

गया    मर्ज  मेरा बस दवा मिली कड़वी
जवाब डोन्ट फिकर के सिवा कुछ और नहीं |१०|

कुछ एक साल हुए , गर्म सूप से था जला
डिमांड चिल्ड बियर के सिवा कुछ और नहीं |११|

(ओपन बुक्स आन लाइन के तरही मुशायरे में शामिल गज़ल)

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Tuesday, July 8, 2014

गज़ल : सोच बदलेगी न जब तक.........



सोच बदलेगी न जब तक.........

संस्कारों की  कमी से , मनचले होते रहेंगे
कुछ न बदलेगा जहां में , हादसे होते रहेंगे.

दोष इसका दोष उसका मूल बातें गौण सारी
तालियाँ जब तक बजेंगी , चोंचले होते रहेंगे 

मौन धरने उग्र रैली , जल बुझेगी मोमबत्ती
आड़ में कुछ बाड़ में कुछ सामने होते रहेंगे
 
आबकारी  लाभकारी  लाडला सुत है कमाऊ
और  भी  तो  रास्ते हैं , फायदे होते रहेंगे 

ये गवाही वो गवाही, है बहुत ही चाल धीमी 
जानता है  हर दरिंदा  , फैसले होते रहेंगे

अश्क हैं घड़ियाल जैसे दाँत हाथी की तरह दो
रंग गिरगिट सा बदलते वो हरे होते रहेंगे 

ठोस दावे ठोस वादे, ढोल-सी आवाज इनकी
सोच बदलेगी न जब तक,खोखले होते रहेंगे

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)