नजदीक घर के
आपके थाना तो है नहीं
बुड्ढा दरोगा
आपका नाना तो है नहीं
तुड़वा के हाथ
पैर करे प्यार आपसे
दिल इतना
बेवकूफ दीवाना तो है नहीं
सूरत पे मर
मिटे अरे वो लोग और थे
झाँसे में
आपके हमें आना तो है नहीं
तालाब छोड़
गाँव का, गमछा धरे चले
काशी में जाके
तुमको नहाना तो है नहीं
सबकी क्षुधा
मिटाने का दावा तो कर दिया
चाँवल का घर
में एक भी दाना तो है नहीं
सत्ता की
बागडोर भी तो उस्तरा ही है
बन्दर के हाथ
इसको थमाना तो है नहीं
अरुण कुमार
निगम
आदित्य नगर,
दुर्ग (छत्तीसगढ़)