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Tuesday, April 29, 2014

गज़ल...




नजदीक घर के आपके थाना तो है नहीं
बुड्ढा दरोगा आपका  नाना तो है नहीं

तुड़वा के हाथ पैर करे प्यार आपसे
दिल इतना बेवकूफ दीवाना तो है नहीं

सूरत पे मर मिटे अरे वो लोग और थे
झाँसे में आपके हमें आना तो है नहीं

तालाब छोड़ गाँव का,  गमछा धरे चले
काशी में जाके तुमको नहाना तो है नहीं

सबकी क्षुधा मिटाने का दावा तो कर दिया
चाँवल का घर में एक भी दाना तो है नहीं  

सत्ता की बागडोर भी तो उस्तरा ही है
बन्दर के हाथ इसको थमाना तो है नहीं

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Tuesday, April 15, 2014

चैत की चंदनिया

                 
चादर सी ,चूनर सी-       चैत की चंदनिया
झांझर सी,झूमर सी -   चैत की चंदनिया

महुआ की मधुता सीमनभाती-मदमाती
छिटके गुलमोहर सी -    चैत की चंदनिया

अनपढ़ - अनाड़ी सी   ,सल्फी सी-ताड़ी-सी
मादक-सी,मनहर सी -   चैत की चंदनिया

अधपक्की इमली सी  ,खटमिट्ठी -खटमिट्ठी
सरसों सी,सुन्दर सी -     चैत की चंदनिया

मनभाये  बैरी सी ,      अमुआ की कैरी सी
टेसू सी ,सेमर सी -    चैत की चंदनिया

कोयल की कुहु-कुहु सी ,पपीहे की पीहु-पीहु सी
उड़ते कबूतर सी -          चैत की चंदनिया

सतरंगी सपनों सी,      दूर बसे अपनो सी
प्रिय की धरोहर सी -    चैत की चंदनिया

मंगतू की मेहनत सी,    चैतू की चाहत सी
गेहूँ  सी,अरहर सी -      चैत की चंदनिया

हल्बी सी,गोंड़ी सी,   छत्तीसगढ़ी बोली सी
भोले से बस्तर सी -   चैत की चंदनिया

ज्योति की शक्ति सी,भक्तों की भक्ति सी
माता के मंदिर सी -  चैत की चंदनिया


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)