Followers

Wednesday, December 18, 2013

पापा कहते हैं बड़ा , नाम करेगा .............


छंद कुण्डलिया :
(१)
पापा कहते हैं बड़ा , नाम  करेगा  पूत
होगी बेटे से  अहा , वंश - बेल मजबूत
वंश - बेल मजबूत , गर्भ में  बेटी मारी
क्यों बेटे की चाह , बनी  इनकी लाचारी
नहीं करो यह पाप,नहीं खोना अब आपा
बेटा - बेटी एक , समझ लो मम्मी-पापा ||

(२)
पापा कहते है बड़ा , नाम करेगा  लाल
इच्छायें सब थोप दीं , बेटा हुआ हलाल
बेटा हुआ हलाल, न कर पाया मनचीता
खूब लगे प्रतिबंध, व्यर्थ में जीवन बीता
अभियंता का स्वप्न, कुदाली गैंती  रापा
हैं  बेटे के  हाथ , बहुत  पछताये पापा ||

(३)
पापा  कहते हैं  बड़ा , नाम  करेगा पुत्र
पहले  प्रतिभा भाँपिये,यही सरलतम सूत्र
यही सरलतम सूत्र , टोकना नहीं निरंतर
सब हो युग अनुरूप,न हो पीढ़ी का अंतर
सफल हुये वे लोग , जिन्होंने अंतर ढाँपा
साथ बढायें पाँव , पुत्र औ’ मम्मी - पापा ||

अरूण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Wednesday, December 11, 2013

११-१२-१३


ग्यारह - बारह  बाद में , है  तेरह का साल
अंकों ने  कैसा  किया , देखो  आज कमाल
देखो आज कमाल , दिवस यह  अच्छा बीते
आज किसी के  स्वप्न , नहीं रह जायें रीते 
दिल कहता है अरूण, आज तू कुंडलिया कह
है तेरह का साल , मास- तिथि बारह-ग्यारह ||

अरूण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Saturday, December 7, 2013

छंद - आल्हा



16, 15 मात्राओं पर यति देकर दीर्घ,लघु से अंत, अतिशयोक्ति अनिवार्य

देह  मूँगियाँ  रेंग  गई  हैं , देख  चींटियों  का  यह काम
प्रेषित उनने किया नहीं है, किन्तु मिला हमको पैगाम ।
अनुशासित  हैं  सभी  चींटियाँ, नहीं परस्पर है टकराव
मन्त्र  एकता का  बतलातीं, और  सिखाती  हैं  सद्भाव ।

बचपन में थी पढ़ी कहानी , आखेटक ने डाला जाल
फँसे कबूतर परेशान थे , दिखा सामने सबको काल ।
वृद्ध कबूतर  के कहने पर , सबने भर ली संग उड़ान
आखेटक के हाथ न आये , और बचा ली अपनी जान ।

क्या बिसात सोचो तिनकों की, हर तिनका नन्हा कमजोर
पर  हाथी  भी  तोड़  न  पाये , जब  बन  जाते  मिलकर  डोर ।
नाजुक  नन्हीं - नन्हीं   बूँदें ,  कर  बैठीं  मिल  प्रेम - प्रगाढ़
सावन  में   बरसी  भी   ना  थीं  ,  सरिताओं   में   आई  बाढ़ ।

सागर  पर  है  पुल  सिरजाना , मन  में  आया  नहीं  विचार
रघुराई   की   वानर  -  सेना  ,   झट  कर   बैठी  पुल  तैयार ।
नहीं असम्भव कुछ भी जग में,मिलजुल कर मन में लो ठान
किया   नहीं  संकल्प  कि  समझो  ,  पर्वत होवे धूल समान ।

जाति - धर्म   का भेद  भुलाके , एक बनें  हम मिलकर आज
शक्ति-स्वरूपा भारत माँ का, क्यों ना हो फिर जग पर राज ।
नन्हें  -  नन्हें  जीव  सिखाते  ,  आओ  मिलकर करें विचार
मन्त्र    एकता  का   अपनायें  ,  करें   देश  का   हम  उद्धार ।

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, छत्तीसगढ़