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Tuesday, October 30, 2012

तू दुर्गा भवानी है


 रोटी भी पकानी है, मेहंदी भी रचानी है
जब वक़्त पड़े हाथों ,तलवार उठानी है |1|


बन पद्मिनी जली हूँ , दुर्गावती बनी हूँ
दुनियाँ ये कह रही है, तू दुर्गा भवानी है |2|


लहरा चुकी हूँ परचम,लेकिन न बात भूली
रस्मो रिवाज वाली ,बातें भी निभानी है |3|


इस देश पे लुटाए , हैं प्राण जवानी में
इतिहास गर्व करता,ये झाँसी की रानी है |4|


परिवार को सम्भाला,बच्चों को है सँवारा
हर सफलता के पीछे, मेरी ही कहानी है |5|


प्रेम बेलि बोई ,विष का पिया है प्याला
कहते हैं लोग मीरा,कान्हा की दीवानी है |6|


यमराज से मिली मैं , सिंदूर मांग लाई
मैं हूँ तपस्विनी जो, कैलाश की रानी है |7|


अब गर्भ में न मारो,दुनियाँ के ठेकेदारों
कन्या नहीं जहाँ पर,उस ठौर वीरानी है |8|


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

Tuesday, October 16, 2012

दहेज – दुर्मिल सवैया


आइये, विचार साझा करें

[ दुर्मिल सवैया – 8 सगण यानि  8 IIS ]
 

लछमी घर की अति नाज पली , मुख-माथ मनोहर तेज रहे

कल की कलिका ससुराल चली,नम नैनन से सब भेज रहे

मनुहार  करें  मनमोहन  से , सँवरी   सजती सुख-सेज रहे

बिटिया  भगिनी  भयभीत  भई  , पितु  भ्रात दहेज सहेज रहे ||

 

तन मानव का मति दानव की,धन-लोलुप निर्मम दुष्ट बड़े

उजले कपड़े नकली मुखड़े , मुँह फाड़ खड़े  अकड़े-अकड़े

बन हाट बजार बियाह गये , विधि नीति कुछेक गये पकड़े

कुछ युक्ति करो भय मुक्त करो,यह रीत बुरी जड़ से उखड़े ||

 

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)

Wednesday, October 10, 2012

बाल श्रमिक


बालश्रमिक को देखकर ,मन को लागे ठेस

बचपन  बँधुआ  हो गया , देहरी  भइ  बिदेस

देहरी  भइ  बिदेस ,  भूलता  खेल –खिलौने

छोटा -  सा मजदूर  ,  दाम  भी  औने – पौने

भेजे शाला कौन ?  दुलारे कर्म–पथिक को

मन को लागे ठेस, देखकर बालश्रमिक को ||

 

[कुण्डलिया छंद –  इसमें छ: पंक्तियाँ होती हैं . प्रथम शब्द ही अंतिम शब्द होता है. शुरु की दो पंक्तियाँ दोहा होती हैं  अर्थात 13 ,11 मात्राएँ .अंत में एक गुरु और एक लघु.

अंतिम चार पंक्तियाँ रोला होती हैं अर्थात 11 ,13 मात्राएँ. दोहे का अंतिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है .]


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)

Saturday, October 6, 2012

नारी – मत्तगयंद छंद सवैया


[ मत्तगयंद सवैया – 7 भगण तथा अंत में 2 गुरु यानि  7 SII ,2 SS ]
 

तू जग की जननी  बनके,  ममता दुइ हाथ लुटावत नारी

नेहमयी भगिनी बनके, यमुना - यम नेह सिखावत नारी

शैलसुता बन शंकर का,  तप-जाप करे सुख पावत नारी

हीर बनी जब राँझन की, नित प्रेम -सुधा बरसावत नारी ||

 

तू लछमी सबके घर की , घर - द्वार सजात बनावत नारी

तू जग में बिटिया बनके , घर आंगन को महकावत नारी

कौन कहे तुझको अबला,अब जाग जरा मुसकावत नारी

वंश चले तुझसे दुनियाँ, तुझ सम्मुख शीश नवावत नारी ||

 

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)