(चित्र ओबीओ से साभार)
(1)
पीर सुमीर न जान सकै, पहचान सकै मन भाव न कोई
देह लखै अरु
रूप चखै, उपमान कहै मन-भावन कोई
वा जननी धरनी सुमिरै , पहुँचाय उसे बिनद्राबन कोई
माइ जसोमति सी धरनी , ममता धरि नैनन सावन रोई ||
(2)
पूनम रात उठैं लहरें , ममता हिय हाय हिलोर मचावै
हूक उठै , सुत चंद्र दिखै,सरसै सरि
सागर सोर मचावै
माइ कहै सुत हाँस सदा,दुनियाँ भर में चितचोर कहावै
चंद्र कहै मुख हाँसत है , मन पीर सदा मनमोर मचावै ||
अरुण कुमार निगम
आदित्यनगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्ट्मेंट, विजय नगर
जबलपुर (म.प्र.)
(ओपन
बुक्स ऑन लाइन महाउत्सव में सम्मिलित रचना)