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Saturday, October 22, 2011

दीपावली के शुभ अवसर पर.....


मनमीता
 
रंग-बिरंगे बाजारों में ,मत जाना ;बस छल बिकता है
झांझर,झूमर,चूड़ी,पायल, मायावी काजल बिकता है.

झूठी जगमग,झूठी ज्योति
नकली हीरे,नकली मोती
कागज के फूलों के गजरे
जिनमें खुशबू तनिक न होती.

माहुर,मेहंदी,टिकुली,बिंदिया
झुमका,बाला,कुमकुम डिबिया
सब बिकता है किंतु न बिकती
पल दो पल आँखों की निंदिया.

सब धन-दौलत की चाहत में, जाने क्या –क्या बेच रहे हैं
बंद  बोतलों में मनमीता , गंगा जी  का  जल बिकता है.

बाजूबंद, बिछिया, अंगूठी
करधनिया भी मिले अनूठी
बिना लाज श्रृंगार अगर हो
सारी चीजें लगती झूठी.

लज्जा ,प्रेम ,क्षमा ,मुस्कानें
बाजारों में बिके तो जाने
जो सच्चे गहने पहचाने
वह क्यों छाने व्यर्थ दुकानें.

सब धन-दौलत के व्यापारी , जाने क्या-क्या बेच रहे हैं
मंदिर परिसर में मनमीता, तुलसी-दल, श्रीफल बिकता है.



अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छतीसगढ़)
विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)

Monday, October 17, 2011

तीन तस्वीरें

              1. रंग

दोस्तों को आस्तीनों में पाला है
इस वजह से  रंग मेरा काला है.

           2.दोस्ती

बात इतनी कहके चारागर गया
दोस्तों ने डस लिया, ये मर गया.

आँख  मूँदे  , बाँह फैलाए  था मैं
पार  सीने  के  मेरे  खंजर  गया.

मयकदे  में  दोस्ती  के  नाम  पर
जहर का प्याला मिला,सागर गया.

वो रहें महफूज मौसम से ‘अरुण’
बस इसी कोशिश में  मेरा घर गया.
           3. रिश्ते

जिन रिश्तों पर नाज बहुत था
उनसे ही शर्मिंदा हूँ
जहरीले धोखे खाकर भी
अब तक कैसे जिंदा हूँ.

गम के मोल में खुशियाँ बेचीं
कुछ बेदाम ही बाँटी थी
बाजारों में चर्चा है कि
किस जग का वासिंदा हूँ.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छतीसगढ़)
विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)

Saturday, October 15, 2011

मेरे सुख को जाने कौन ?

सबका सुख अपना-अपना
मेरे सुख को जाने कौन  ?
सब अपने-अपने में खुश हैं
मुझको अपना माने कौन  ?

अब ऐसी दुनिया में यारों
जीना क्या, ना जीना क्या   ?
सबकी अपनी-अपनी हस्ती
मेरी हस्ती माने कौन   ?

वो युग न रहा,दुनियाँ न रही
रिश्तों पर जान लुटाते थे
ऐसे युग में जी के क्या करें
आएगा हमें मनाने कौन   ?

ना घर मेरा, ना रिश्ते मेरे
मैं मान करूँ तो कैसे करूँ   ?
अपने ही हँसी उड़ाये जब
फिर आए मुझे हँसाने कौन   ?

मैंने खुद जला कर रौशन की
जिनकी दुनियाँ - मेरे न हुए
क्यों खुद को ही न राख करूँ
आएगा मुझे जलाने कौन   ?

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छतीसगढ़)
विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)

Thursday, October 13, 2011

वक़्त बदलता है कैसे......


दिल की बात दौलत तक
पहुँची और तमाम हो गई
दिलवर सौदागर बन बैठा
तो चाहत नीलाम हो गई.

चाँद-सितारे जान रहे हैं
किसने वादे किए-निभाए
और चमन की खातिर फिर तो
ऐसी बातें आम हो गई.

कभी इबादत के फूलों सी
उनकी आँखें पाक सदा थी
आज अमीरों की महफिल में
एक छलकता जाम हो गई.

बात-बात पर कहती थी जो
तुम बिन मैं मर जाऊंगी
मगर आज वो खुशी-खुशी से
और किसी के नाम हो गई.

वक़्त बदलता है कैसे ये
उस दिन हमने जाना ,जब
सुबहे बनारस हाय यकायक
एक अवध की शाम हो गई.

चलो याद की चादर ताने
अरुण कहीं सो जाते हैं
इक दिन वो आएंगे कहते
जिंदगी कोहराम हो गई.


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छतीसगढ़)
विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)
(रचना वर्ष – 1978)

Wednesday, October 5, 2011

नवरात्रि पर्व की शुभकामनायें

जय दुरगा माता............

                   माता का सिंगार
                      (1)
मूड़  मुकुट  मोती  मढ़े ,  मोहक  मुख  मुस्कान
नगन नथनिया नाक मा, कंचन कुण्डल कान..........ओ मईया..........
                                (2)
मुख-मण्डल चमके-दमके ,   धूम्र-विलोचन नैन
सगरे जग बगराये माँ , सुख-सम्पत्ति, सुख-चैन. .........ओ मईया..........
                                (3)
लाल चुनर लुगरा लाली , लख-लख नौलखा हार
लाल  चूरी  , लाल टिकुली  ,  सोहे  सोला  सिंगार. .........ओ मईया..........
                                (4)  
करधन   सोहे   कमर  -  मा   ,   सोहे   पैरी   पाँव
तोर अँचरा  दे जगत – ला , सुख के  सीतल छाँव. .........ओ मईया.......... 
                               (5)
कजरा सोहे नैन मा, मेंहदी सोहे हाथ
माहुरसोहे पाँव मा , बिंदी सोहे माथ. .........ओ मईया..........
                             (6)
एक हाथ मा संख हे, एक कमल के फूल
एक हाथ तलवार  हे ,  एक हाथ तिरसूल. .........ओ मईया..........
                             (7)
एक हाथ मा गदा धरे, एक मा तीर कमान
एक  हाथ - मा चक्र हे ,  एक  हाथ  वरदान. .........ओ मईया..........
                             (8)
अष्टभुजा  मातेस्वरी  ,  महिमा  अपरम्पार
तीनो लोक तोर नाम के होवे जयजयकार. .........ओ मईया..........

                   नव-रात्रि पर्व  पूजा
                             (9)
नवराती धर आये हे ,  नवदुरगा    नव रूप
गरबा खेलय भक्त संग, आनंद अति-अनूप. .........ओ मईया..........
                           (10)
नवग्रह  के  पूजा  करयँ  ,   पूजैं  गौरी - गनेस
खप्पर-कलस ला पूज के, काटयँ कस्ट-कलेस. .........ओ मईया.......... 
                            (11)
तोर  चरन  अर्पन करौं ,  नरियर – मेवा - पान
जय अम्बे जगदम्बे माँ ,  जग के कर कल्यान. .........ओ मईया.......... 
                           (12)
मन बिस्वास के आरती  , सरधा भक्ति के फूल
अरपित हे तोर चरन मा, हाँसके कर तँय कबूल. .........ओ मईया.......... 
                           (13)
अगर - कपूरके आरती , गोंदा के गरमाल
पूजा बर मँय लाये हौं,कुंकुम सेंदूर गुलाल. .........ओ मईया..........

          माता के विविध रूप और महिमा                            
                             (14)
ब्रम्हानी - रूद्रानी माँ   ,  कमला रानी देख
सुर नर मुनि जन दुवार मा पड़े हें माथा टेक. .........ओ मईया..........
(15)
सुम्भ-निसुम्भ सँहार करे, मधुकैटभ दिये मार
जब - जब पाप खराए हे  ,   करे जग के उद्धार. .........ओ मईया..........
(16)
डम डम डम डमरू बजै, बाजै ताल-मिरदंग
भक्तन   नाचै  झूम  के, चघे  भक्ति के  रंग. .........ओ मईया..........
                             (17)
देव – मुनि  सुमिरैं  सदा ,  सेवा गावैं  संत
बेद-पुरान बखान करैं, महिमा तोर अनंत. .........ओ मईया..........
                             (18)
माई  के   मंदिर  सदा    ,   जगमग  जागे  जोत
जेखर दरसन मा मिलय सुख-सरिता के स्त्रोत. .........ओ मईया..........
                             (19)
दुरगा के दरबार मा , मिटे दरद दु:ख क्लेस
महिमा गावयँ रात-दिन ,ब्रह्मा बिस्नु महेस. .........ओ मईया..........
                             (20)
किरपा कर कात्यानी , मोला तहीं उबार
तोर सरन मा आये हौं, भव-सागर कर पार. .........ओ मईया..........
(21)
हे महिसासुर-मर्दिनी ,  सुन ले हमर गोहार
पाप मिटा अउ दूर कर, जग के अतियाचार. .........ओ मईया..........
                             (22)
दरसन दे  जगमोहिनी ,  मन  परसन हो जाय
कट जाय कस्ट कलेस अउ सबके नैन जुड़ाय. .........ओ मईया..........                           
(23)
सुमिरौं तोरे नाम ला, जस गावौं दिनरात
सर्वमंगला सीतला, सुख के कर बरसात. .........ओ मईया..........
(24)
शैल – पुत्री ,  सिंहवाहिनी , पैंयालागौं तोर
तोर सरन मा आये हौं, दु:ख संकट हर मोर. .........ओ मईया..........
(25)
तीन लोक चारों जुग मा, तोर ममता के छाँह
जगदम्बा माँ उबार ले ,  मोर  पकड़  के  बाँह. .........ओ मईया..........
(26)
हे महामाया  दूर  कर ,    जग के मायाजाल
मन झन अरझे मोह मा ,काट दे सब जंजाल. .........ओ मईया..........
                             (27)
पाँव परत हौं चंडिका ,दु:ख दुविधा कर दूर
तोर सरन मा आये ले, दु:ख बन उड़ै कपूर. .........ओ मईया..........
                             (28)
बमलेस्वरी बल   दान दे , मयँ बालक कमजोर
तोर किरपा मिल जाय तो, जिनगी होय अंजोर. .........ओ मईया..........
                             (29)
दंतेस्वरी के दुवार - मा ,  पूरन   मनोरथ    होय
सुन के मयँ चले आय हौं, मन-बिस्वास सँजोय. .........ओ मईया..........
                             (30)
अरज करौं  माँ सारदा ,  दे  सक्ति  के दान
तयँ माता संसार के, हम सब तोर संतान. .........ओ मईया..........
                             (31)
सुमिरत हौं समलेस्वरी , संकट काट समूल
तोर चरन अरपन करवँ, मन-सरधाके फूल. .........ओ मईया..........
(32)
अनाचार अनियाय के,  समूहे कर  दे नास
अँधियारी घिर आय हे, तयँ कर दे परकास. .........ओ मईया..........

          नव-रात्रि पर्व का पावन वातावरण
(33)
नगर डगर हर गाँव गली,नवराती के धूम
कोन्हों उतारैं आरती ,  कोन्हों  नाचैं  झूम.                     
                             (34)
गाँव सहर नवराती मा, मण्डप मंच सजायँ
नर -नारी सरधापूर्वक ,  मूरत  तोर मड़ायँ. .........ओ मईया..........
                             (35)
गली-गली झिलमिल झालर, सरधा भक्ति के गीत
तीरिथ  जइसे  चारों  मूड़ा, लागय    परम - पुनीत. .........ओ मईया..........
(36)
झाँकी कहूँ सजायँ हें , कहूँ  मड़ई  के  जोर
गली गली गमके-गूंजै, जय माता के सोर. .........ओ मईया..........
(37)
कहूँ नाच –गम्मत  कहूँ   कवि सम्मेलन होय
कहूँ संत दरबार सजय, कहूँ मेर कीरतन होय. .........ओ मईया..........
                             (38)
सिद्धिपीठ , मंदिर – मंदिर ,  जले जँवारा जोत
जेखर दरसन मात्र ले ,काज सुफल सब होत. .........ओ मईया..........
                             (39)
कई कोस पैदल चलयँ, हँसि-हँसि चघयँ पहार
मन-  भक्ति जगाइ के,  भक्तन  पहुँचय  दुवार. .........ओ मईया..........
(40)
कोन्हों राखयँ मौनब्रत,  कोन्हों करयँ उपास
माँ तोला अरपित करयँ , सरधा अउ बिस्वास. .........ओ मईया..........
(41)
भक्ति भाव मा डूब के, ज्योति-कलस जगायँ
नर-नारी नवराती मा, मनवांछित फल पायँ. .........ओ मईया..........
(42)
माता सेवा जब सुनै , मन मा उठै हिलोर
तन-मन नाचै झूम के , होवै भाव-विभोर. .........ओ मईया..........

            माता से मनोकामना
(43)
साँझ बिहिनिया आरती , रोज उतारौं तोर
भवसागर ले पार कर , जीवन-डोंगा मोर. .........ओ मईया..........
(44)
सबो जियैं  संसार  मा ,  दया-मया  के संग
भेदभाव मिट जायँ सबो, होय कभू ना जंग. .........ओ मईया..........
(45)
धरम-नीति के जीत हो,  दया मया हो  चँहुओर
पाप कुमति के नास हो, अइसन कर दे अँजोर. .........ओ मईया..........
(46)
मात-पिता के मान हो, गुरु के हो सम्मान
मनखे बन मनखे जीयै, सद् बुद्धि  दे दान. .........ओ मईया..........
(47)
लोभ मोह हिंसा हटय  ,  काम - क्रोध मिट जाय
सत् जुग आये लहुट के,अइसन कर तयँ उपाय. .........ओ मईया..........
(48)
अनपुरना के वास हो ,  खेत -  खार  -खलिहान
कोन्हों लांघन झन रहय, समरिध होय किसान. .........ओ मईया..........
(49)
तोर बसेरा कहाँ नहीं, कन-कन तहीं समाय
जउन निहारे भक्ति से ,तोर दरसन फल पाय. .........ओ मईया..........
(50)
अँचरा - मा  ममता  धरै , नैनन  धरे  सनेह
बिन माँगे आसीस मिलै, सक्ति समाये देह. .........ओ मईया..........    
(51)
नई माँगौं सोना चाँदी, मांगौं आसीरवाद
सबै जिनिस ले कीमती,माता के परसाद. .........ओ मईया..........
(52)
कटै तोर सेवा करत, जिनगी के दिन चार
तोर  नाम  के आसरा ,  तहीं  मोर  संसार. .........ओ मईया..........                

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छतीसगढ़)
विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)